कैया रूस्यां बैठ्या हो खाटूबाला श्याम रे।
टाबर हूँ मैं तेरो थाम मनै तो पिछाण रे॥टेर॥
वो दिन याद करो- रोज घरा आवतां
सुध म्हारी लेता हरदम- आता र जावतां
अब क्यूं थे सोग्या श्याम करड़ी खूंटी ताण रे॥
टाबर…
आयो हूँ थारे दर पे- दुनिया स हार के।
लाखां की बणी बिगड़ी, श्याम तेरे द्वार पे।
मेरी भी बनादे बिगड़ी, टाबर तेश जाण के॥
टाबर…
चाण चुंक सं थारो, दौड के आणो।
मने ना पसंद श्याम, घणो तरसाणो।
पड़गी धणीड़ा थानै, बड़ी खोटी बाण रे॥
टाबर…
थारे रूस्यां स श्याम पार म्हारी पड़े ना।
म्हानै थारे बिना थानै- म्हारे बिन सरे ना।
दोनु हाथ मिलाया धुपसी-इतणी तो जाण रे॥
टाबर…
देरी पे देर करो- मेरे ना समाई।
बेगा सा दोड्या आवो-कृष्ण कन्हाई।
खोटी तो सुनाणो ना चाहूँ-अब तो पिछांण रे॥
टाबर…
“’आनन्दी” चाकर थारी, सुध म्हारी लीज्यो।
थाने बुलावे “पवन’” बेगा दरस दीज्यो।
भक्तारी लाज बचाल्यो-बढसी थारो मान रे॥
टाबर…