कुण सिणगार्यो यो कुण सिणगार्यो-२
सांवरियै नैं बनड़ो बणा दियो यो क़ुण सिणगार्यो-२
(तर्ज:- कठे सुं आयी सुंठ…..)
कठै सैं फूलड़ा ल्याया, ये क़ुण थारा हार बणाया-२
कुण जंचा जंचा पहरायाजी आंपै लूण राई वारो-२
कुण सिणगारयो….।।
आलूसिंह जी बाग लगाया जामें फ़ूलड़ा घणां उगाया-२
वही केशर तिलक लगाया जी सिणगार कीनों सारो-२
कुण सिणगारयो….।।
थारे किरिट मुकुट क़ुण ल्याया, ये क़ुण थारै छत्र चढ़ाया-२
ज्यानै देख श्याम शरमायाजी, जैसे चांद को उजियारो |
क़ुण सिणगारयो….।।
थारा सेवक मुकुठ चढ़ाया, थारा भक्तां छत्र चढ़ाया-२
म्हारी प्रसन्न हो गयी कायाजी, म्हारै मन में आनन्द छायो |
कुण सिणगारयो….।।
श्रृंगार सजीलो प्यारो, कहे सोहनलाल यो थारो-२
म्हानै दर्शन देता रैजो जी, थे सबका संकट टारो-२
कुण सिणगार्यो….।।