हे दुखभंजन तेरी करुणा का, कोई पार नहीं
तू उसको सहारा देता है, जिसका कोई आधार नहीं
तर्ज : दुनिया में देव हजारों…
जहाँ उजड़े दिलों में खुशियों के, गुलशन महकाए जाते हैं
दुनिया में ऐसा और कहीं, देखा हमने दरबार नहीं। हे दुखभंजन …
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जब-जब दीनों का दिल रोया, तब-तब भीगी तेरी पलकें
मैं कैसे कह दूँ श्याम तुम्हें, हम दीनों से है प्यार नहीं। हे दुखभंजन…
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साँवरिया जिसके साथ है तू, वो भवसागर तर जायेगा
वो नाव भँवर में डूबेगी, जिसका तू खेवनहार नहीं । हे दुखभंजन…
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इस जग से हारे लोगों के, दुख-दर्द की है बस एक दवा
वो श्याम शरण में आ जाए, दूजा कोई उपचार नहीं। हे दुखभंजन…
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चुभती है कलेजे में जाकर, मेरे श्याम विवश होकर आते
फ्रियाद किसी की दर्द भरी, जाती है कभी बेकार नहीं। हे दुखभंजन…
श्रद्धा के हार में भावों के, कुछ फूल पिरोकर लाया हूँ
ये भेंट ‘गजेसिंह’ की दाता, स्वीकार करो इन्कार नहीं। हे दुखभंजन…