घनश्याम तुम्हारी चितवन…Ghanshyam Tumhari Chitvan…

घनश्याम तुम्हारी चितवन मं,
जादू है मेरे, जचगी मन मं ।।
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कद कठै कुणसै चक्कर मं फिरतो फिरै,
मेरी अरदास पर गौर क्यूं ना करै,
धीर मेरै नहीं, रहम तेरे नहीं,
मेरा प्राण पड्या, जीवन धन मं ।।
घनश्याम तुम्हारी चितवन ……
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याद तन्नै रिझाणै की रीति नहीं,
एक बाजी भी तेरै सं जीती नहीं,
काब्ण्जो डाट ले, दर्द नै बाँट ले,
तूं कद आसी मेरै, आँगण मं।।
घनश्याम तुम्हारी चितवन …….
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तेरी बांकी अदा पर मेरा दिल फ़िदा,
छोड़कर हो जाइये ना कन्हैया जुदा,
नेह की धार तूं, मेरी पतवार तूं,
तन्नै बंद करल्यूं, इन पलकन मं ।।
घनश्याम तुम्हारी चितवन …….
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श्यामबहादुर तेरै स्थामनै लुट गयो
याद की पीड़ सैं काव्ठजो घुट गयो,
जी दुखावै मना, ‘शिव’ सतावै मना,
छवि बैठ गई, चंचल मन मं ।।
घनश्याम तुम्हारी चितवन ……

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