दोहा – शुरु झुरत सुख चन्द्रमा सेवक नैन वकोर ।
अष्ट प्रहरनिरखत रहूँ शुरु मूराति की ओर ।।
छोटी-सी अरदास गुरूजी चरणां मैं पड़ी ।
लगा के श्याम से अरदास मीठाद्यो संकट की घड़ी ।।टेर ।।
_______________
सारै जग में भटक्यायो पर स्रुणी ना कोई बात ।।
थारै आगै अर्ज करां म्हे जोड़ा दोनूँ हाथ |
म्हारी अभिलाषा न पूरी करद्यो अब की घड़ी ।|१।।
_______________
गिरतो पड़तो ठोकर खातो थारै द्वारे आयो ।
काम मेरो छोटो सो गुरूजी करद्यो मन को चायो ||
म्हार रखद्यो सिर पर हाथ लेकर मोर की छड़ी ।।२।।
_______________
ऐसो द्यो वरदान जुरूजी नित उठ मौज उड़ावाँ ।
फाणण क मेल पर बाबा श्याम का दर्शन पावाँ ।।
म्हार घर में लगाद्यो अब तो प्रेम की झड़ी ।॥३ |।
_______________
सेवक पालीराम थार चरणां शीश नवाव ।
ऐसी छाप लगाद्यो गुरूजी किस्मत पलटी जाव |
म्हारी पार लगा द्यो नैया थारे भरोस पड़ी ।।४।।