बिन हरिनाम गुजारा नहीं…Bin Harinam Gujara Nahi…

बिन हरिनाम गुजारा नहीं,
रे बावरे मन किनारा नहीं ।।
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नाव पुरानी, चंचल धारा, मौसम तूफानों का,
खेते-खेते हिम्मत हारी, डगमग डोले नौका,
प्रीतम को जो पुकारा नहीं,
रे बावरे मन गुजारा नहीं ।।
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फँसता क्‍यों जाता माया में, ये है नागिन काली,
डस जायेगी बच कर रहना, चौतरफ़ा मुँह वाली,
फिर ये जनम दुबारा नहीं,
रे बावरे मन गुजारा नहीं ।।
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अब तो तूं इस नैया को, करदे श्याम हवाले,
बस की बात नहीं बन्दे की, वो दातार सम्हाले,
अहम का भाव गवारा नहीं,
रे बावरे मन गुजारा नहीं ।।
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ये भी मौका चूक गया ‘शिव’, तो क्या आनी-जानी,
श्यामबहादुर जाग नींद से, जीवन ओस का पानी,
फूल के होना गुब्बारा नहीं,
रे बावरे मन गुजारा नहीं ।।

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