तेरी मेहरबानी का है बोझ इतना,
अभी मैं उठाने के काबिल नहीं हूँ।
आ तो गया हूँ मगर जानता हूँ,
तेरे दर पे आने के काबिल नहीं हूँ।
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जमाने की चाहत में खुद को मिटाया,
तेरे नाम हरगिज जुबाँ पर न लाया।
गुनहगार हूँ मैं, खतावार हूँ मैं
तुम्हें मुहँ दिखाने के काबिल नहीं हूँ॥
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तुम्ही ने अदा की मुझे जिन्दगानी,
मगर तेरी महिमा नहीं मैंने जानी।
कर्जदार तेरी दया का हूँ इतना,
कर्जा चुकाने के काबिल नहीं हूँ।
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यही चाहता हूँ कि सर को झुका लूं,
तेरा दर्श एक बार जी भर के पा लूं,
सिवा दिल के टुकड़ो के ऐ मेरे बाबा,
मैं कुछ भी चढ़ाने के काबिल नहीं हूँ।
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भटकता हूँ लेकर गुनाहों भरा दिल,
ठिकाना ना कोई, नहीं कोई मंजिल।
“श्याम’ अपने हाथों से आकर उबारो ,
मैं अब आजमाने के काबिल नहीं हूँ।