सारी दुनिया जान गई मैं,
नौकर हूँ दरबार का,
हमने भी अब सोच लिया है,
जो हुकुम सरकार का ।।
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बन्दा जिसकी करे चाकरी,
जगत सेठ कहलाता है,
जब जी चाहे उसका मुझको,
अपने पास बुलाता है,
जो कुछ मेरे पास है सब कुछ,
दिया हुआ दातार का ।।
हमने भी अब सोच ……
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ऐसा मालिक मिले कहाँ जो,
दुख खड़े दूर करे,
सेवा करूँ या ज्यादा,
नहीं मुझे मजबूर करे,
हाथों-हाथ मिले तनख्वाह यहाँ,
काम नहीं उधार का ।।
हमने भी अब सोच ……
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जो भी माँगू इस मालिक से,
नहीं मुझे इनकार करे,
जितना माँ बेटे को करती,
उतना मुझको प्यार करे,
‘बनवारी’ खुश रहता हूँ मैं,
पाकर खजाना प्यार का ।।
हमने भी अब सोच ……