रामा रामा रटते रटते बीती रे उमरिया |
रघुकुल नंदन कब आवोगे, भिलणी की डगरिया ।।
(तर्ज: नगरी नगरी द्वारे द्वारे…)
मैं भिलनी सबरी की जाई, भजन भव नहीं जाकूँ रे ।
राम तुम्हारे दरसन के हित, वन में जीवन काटूँ रे |
चरण कमल से निर्मल कर दो, दासी की झुंपड़िया ।।
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रोज सवेरे वन में जाकर, रास्ता साफ कराती हूँ ।
अपने प्रश्नु के खातिर वन से, चुन चुन के फल लाती हूँ ।
मीठे मीठे बेरन की भर , ल्याई मैं छबड़िया |।
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सुन्दर श्याम सलोनी सूरत नैनो बीच बसाऊँगी ।
पद पंकज की रज धर मस्तक, चरणों में सीस नवाऊँगी ।
प्रभुजी मुझको भूल गये क्या, दासी की खबरीया ।।
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नाथ तुम्हारे दरशनके हित, मैं अबला एक नारी हूँ ।
दरसन बिन दोऊ नैना तरसे, दिलकी बड़ी दुख्यारी हूँ ।
मुझको दरसन देवो रामा, डालो म्हारे नजरिया ।।
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