पता कुछ नहीं है, कहाँ जा रहा हूँ,
तूं ले जा रहा है, वहीं जा रहा हूँ ।।
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तूं अंधे की लाठी, पता बे-पता का,
मैं फल पा रहा हूँ, अपनी खता का,
कहाँ से कहाँ, ठोकरें खा रहा हूँ ।।
पता कुछ नहीं है ………
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कदम जो तेरे, आशियाने में रक्खा,
मजा खूब मैं तेरी, उल्फत का चखा,
फना हो रहा फिर भी, रंग ला रहा हूँ ।।
पता कुछ नहीं है ………
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तुम्हारे लिये मैंने, छोड़ा ज़माना,
मगर तुम भी करने, लगे हो बहाना,
मैं तिनके की जैसे, बहा रहा हूँ ।।
पता कुछ नहीं है ………
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सुनो श्यामबहादुर, कन्हैया रंगीला,
ना पहचान पाया, ‘शिव’ तेरी लीला,
सितम दिलरुबा का, सहे रहा हूँ ।।
पता कुछ नहीं है ………