मंदिर मं बड़ग्यो,
होली खेलण सैं डरतो सांवरो ।।
बणकै बीनणी भीतर घुसग्यो,
ललकारै नर-नारी,
हिम्मत है तो बाहर आज्या,
लेकर रंग-पिचकारी ।।
मंदिर मं बड़ग्यो, होव्डी……
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नैण चुराकर भीतर घुसग्यो,
करले तूं मनमानी,
हिम्मत है तो बाहर आज्या,
याद करादयां नानी ।।
मंदिर मं बड़ग्यो, होव्डी……
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ओ रंग-रसिया सुण मन बसिया,
यो के नाम कमाया,
आज्या अब तो छैल शरम कर,
हाँसे खड़ी लुगायां ।।
मंदिर मं बड़ग्यो, होव्ठी……
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मै तो निर्भय तेरे नाम को,
ओढ्यां फिरां जप,
ऐसो काम करणै सें लगज्या,
सरकारी म॑ बट्टो ।।
मंदिर मं बड़ग्यो, होव्ठी……
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मैं तेरो तूं मेरो ‘बिहारी’,
तूं राजी मैं राजी,
चलती आई सदा चलेगी,
या अपणी रंगबाजी ।।
मंदिर मं बड़ग्यो, होव्ठी……