लाय संजीवन बुटी लखन जियाये…Laye Sanjivan Buti Lagan Jiyaye…

लाय संजीवन बुटी लखन जियाये,
श्री रघुवीर हर्ष उर लाये-2
हे माँ अंजनी के लाल,

तुने कर दिया खुब कमाल-2 ।।

(तर्ज : तेरे मस्त-मस्त दो नैन)

अंजनी के लाल हो,
बड़े बेमिसाल हो,
वीरों में तुम हो महावीर,
दुनिया ये जानती,
सेवा में राम की,
रहते सदा हो अधीर,
बुटी संजीवन जो तुम लेके न आते,
भाई लखन जी अपने प्राण गंवाते-2
हे माँ अंजनी के…. ||1 ।।

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जाकर के मात को,
अयोध्या में तात को,
क्या मुँह दिखाते हम,
दुखड़े संजोग में,

पत्नी वियोग में,
भाई गँवा जाते हम,
उर्मिला को जाके हम कैसे बताते,
भाई लखन की हालत किससे सुनाते-2
हे माँ अंजनी के…. || 2।।

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वचन है ये राम का,
जग मे हनुमान सा,
भक्त न होगा कोई और,
वीरो मे वीर हो,

तुम महावीर हो,
भक्तों के हो सिरमौर,
सेवा सेवक की है रंग ल्याई,
“रोमी” बनाया तुमने हनुमत को भाई-2
हे माँ अंजनी के…. ।। 3।।

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