हर बार मैं खुद को लाचार पाती हु – Har Baar Me Khud Ko Laachar Paati Hu

हर बार मैं खुद को लाचार पाती हु
तेरे होते क्यों दादी मैं हार जाती हु

तर्ज – मेरे दुःख के दिनों वो बड़े काम आते हैं

हर कदम क्या युही मैं ठोकर खाऊ गी
माँ इतना केह दे क्या मैं जीत न पाउंगी
तेरी चोकठ पे मैं क्या बेकार आती हु
तेरे होते क्यों दादी मैं हार जाती हु

तू अपनी बेटी को तू भूली बिसरी है
लाडो अरदास लिए चोकठ पे पसरी है
तेरी ममता याद दिलाने तेरे द्वार आती हु
तेरे होते क्यों दादी मैं हार जाती हु

मेरे हाथ पकड़ ले माँ मैं इतना ही चाहू
स्वाति फिर जीवन में मैं हार न पाऊ
अरमान ये हर्ष लिए दरबार आती हु
तेरे होते क्यों दादी मैं हार जाती हु

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