दरबार हजारों देखे है
तेरे दर सा कोई दरबार नहीं
जिस गुलशन में तेरा नूर नहीं
ऐसा तो कोई गुलजार नहीं।
दरबार…….
( तर्ज :- कव्वाली – दरबार )
अरशों पे फरिएते रहते है,
दिन रात झुके तेरे कदमों पे
है कौन बसर इस दुनिया में,
तेरे दर का जो खिदमतगार नहीं।
दरबार…….
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दुनिया से भला हम क्यां मांगे,
दुनिया खुद एक भिखारिन हैं
मांगो तो मेरे श्याम बाबा से,
जहां होता कभी इन्कार नहीं।
दरबार…….
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वो आंख तो आंख नहीं होती,
जिस आंख में शर्मों-हया ही नही
वो दिल तो नहीं कोई पत्थर है,
जिस दिल में तुम्हारा प्यार नहीं।
दरबार…….
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हसरत है के वकते रूखसत में,
जब दम ही मेरा निकलता हो
तेरा एक नजारा काफी है
और कुछ भी मुझे डरकर नहीं ।
दरबार…….