चूनड़ तो ओढ़ म्हारी दादी
पीढ़े पर बैठया जी,
तो अइयाँ की चून्दड़ी माँ
क़ुण तो उढ़ाई जी,
म्हारे मन भायी जी ।। टेर ।।
(तर्ज : पीलो)
लाल सुरंगी मेहन्दी
हाथां में राची जी,
तो अइयाँ की मेहन्दी माँ
कुण तो रचाई जी,
म्हारे मन भायी जी || १ ||
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हीरो तो चमके दादी
नथली में थारे जी,
तो अइयाँ की नथली माँ
कुण तो पिराई जी,
म्हारे मन भायी जी || २ ||
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बनड़ी सी बणकर दादी
आसण-बिराजे जी,
तो अइयाँ की सोवणी माँ
कुण तो सजाई जी,
म्हारे मन भायी जी || ३ ||
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म्हे तो बड़भागी हर्ष
दादी पधार॒या जी,
तो अइयाँ की मन में थारे
पहल्याँ क््युं ना आई जी,
म्हारे मन भायी जी || ४ ||