सुख के साधन के लिये…Sukh Ke Sadhan Ke Lie…

सुख के साधन के लिये, क्यूँ खुद को छलता है,
कुछ तौल के बोल ज़रा, क्या शब्द निकलता है ।।
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आती है ये जाती है, माया बीमारी है,
जीवन की नहीं किसकी, कोई ठेकेदारी है,
देने को नहीं कुछ भी, लेने को मचलता है ।।
कुछ तौल के बोल ज़रा…….
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देने वाले देकर, खामोश ही रहते हैं,
चिन्तन करने लात हैं सहते हैं,
देता है वही खुशबु, काँटों में जो पलता है ।।
कुछ तौल के बोल ज़रा…….
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‘शिव’ श्यामबहादुर ये, कहते हैं जमाने से,
क्या छेड़ के लेगा तूं, मदहोश दीवाने से,
सौदाई ये ऐसा जो, गिर-गिर के सम्हलता है ।।
कुछ तौल के बोल ज़रा…….

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