सुख के साधन के लिये, क्यूँ खुद को छलता है,
कुछ तौल के बोल ज़रा, क्या शब्द निकलता है ।।
______________
आती है ये जाती है, माया बीमारी है,
जीवन की नहीं किसकी, कोई ठेकेदारी है,
देने को नहीं कुछ भी, लेने को मचलता है ।।
कुछ तौल के बोल ज़रा…….
______________
देने वाले देकर, खामोश ही रहते हैं,
चिन्तन करने लात हैं सहते हैं,
देता है वही खुशबु, काँटों में जो पलता है ।।
कुछ तौल के बोल ज़रा…….
______________
‘शिव’ श्यामबहादुर ये, कहते हैं जमाने से,
क्या छेड़ के लेगा तूं, मदहोश दीवाने से,
सौदाई ये ऐसा जो, गिर-गिर के सम्हलता है ।।
कुछ तौल के बोल ज़रा…….