पितरां की शान निराली जी, पितरां की
पितरां की सकलाई ठाडी
घर-घर मायँ रुखाली जी, पितरां की, कोई घर…
(तर्ज: खाटू को श्याम रगीलो जी…)
घर मूँ द्यो पितरां ने वासो
पिण्डै मांहि दिवलो चासो
ज्योति बड़ी महरां वाली जी, पितरां की, कोई ज्योत…
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पितरां को है वास सुहाणो
पितरां नै नहीं कदै भ्ुलाणो
पूजा सुख देणै वाली जी, पितरां की, कोई पूजा…
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पितरां नै थे मन से पूजो
“रवि” कह्लै नहीं इनसो दूजो
आशीष जाय न खाली जी, पितरां की, कोई आशीष ….