पाछै सै मटकी फोड़ी या काहे की होली कान्हूड़ा…Pachhe Se Phodi Ya Khahe Ki Holi Kanhuda…

पाछै सै मटकी फोड़ी या काहे की होली कान्हूड़ा

म्हानै जाण अकेली मटकी फोड़ी छै
उल्हा हँसकर बौलया छै, गौरी होली छै
मुखड़ो लाल करे छै कर बर जोरी
या काहे की……


म्हारी अंगिया तर कर दी सारी भे गेरी
बढ़िया बुटिया लहंगारी घिलमिल कर गेरी
सासु हेला कर सी जी मटकी कोरी
या काहे की……


म्हारी संग की सहैल्या दौड़ी आवैछ
रंग की झारया पिचकारया लेरा ल्यावै
‘कोई घूंघट खोलू छूँ ललित किशोरी
या काहे की……

नन्द्‌ रा लाला न पकड्यो सारी मतवार्‌या
रंग री झारया औंधावे मारे पिचकारया
गावै चंग बजाबे राधा गोरी
या काहे की……

सबका मुखड़ा रंग दीनो बाल्यो सांवरियों
मुरली बजावबे नाचै छ नट नागरियों
रसियो करली ‘युगल’ चित चोरी
या काहे की……

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