है दीनबन्धु शरण हूँ तुम्हारी, खबर लो हमारी,
ये माना के गलती हम से हुई है भुलाया है तुझको,
अपने पराये का भेद ना जाना माफ़ करो हमको,
आखिर तो गम में याद किया है तुम को मुरारी
हे दीनबन्धु शरण हूँ तुम्हारी…
______________
दीनों के नाथ तुम ने दुखियाँ को हैं गले से लगाया,
गोद में बिठा के उसके आंसू को पोछा थोड़ा थप थपाया,
करूणा के सिंधु इधर भी नजर कर मैं कब का दुखारी,
हे दीनबन्धु शरण हूँ तुम्हारी…
______________
हमने सुना है कान्हा तेरी खुदाई का जोड़ नहीं है,
जाये कहा हम कान्हा तेरे सिवा कोइ और नहीं है,
दो बूंद सागर से हम को भी देदो हो तृप्ती हमारी
हे दीनबन्धु शरण हूँ तुम्हारी …….