हर बार मैं खुद को,
लाचार पाता हूँ,
तेरे होते क्यूं बाबा,
मैं हार जाता हूँ॥टेर॥
(तर्ज: मेरे दुःख के दिनों में वो…. )
हर कदम पे क्या यूंही,
मैं ठोकर खाऊँगा,
बस इतना कह दे क्या,
मैं जीत न पाऊँगा,
तेरी चौखट पे मैं क्या,
बेकार आता हूँ॥१॥
______________________
क्यूं अपने वादे को,
तू भूला बिसरा है,
हारा हुआ ये प्राणी,
चरणों में पसरा है,
तेरा वादा याद दिलाने,
तेरे द्वार आता हूँ॥२॥
______________________
मेरे साथ खड़ा हो जा,
बस इतना ही चाहूँ,
जीवन की बाजी फिर,
मैं हार नही पाऊँ,
असर्मां ये ‘हर्ष’ लिये,
दरबार आता हूँ॥३॥