गिरधर मेरे मौसम आया, धरती के श्रृंगार का।
डाल डाल पर लग गये झूले , बरसे रंग बहार का ॥टेर॥
उमड़-घुमड़ काली घटा शोर मचाती है,
स्वागत में तेरे सांवरा, जल बरसाती है,
कोयलिया कूकती, मयूरी झूमती,
तुम्हारे बिन मुझको मोहन, बहारे फीकी लगती हैं।
गिरधर……
चांदी बरणी चांदनी, अंग जलाती है,
झरनों की ये रागिनी, दिल तड़पाती है,
चली जब पुरवाई, तुम्हारी याद आई,
गुलों में अंगारे दहके , कसक बढ़ती ही जाती है
गिरधर……
ग्वाल बाल संग गोपिया, श्री राधे आई,
आज कहो तुम्हे कौन सी, कुब्जा भरमाई,
तुम्हारी राह में, मिलन की चाह में,
बिछाएँ पलकें बैठे है तुम्हारी याद सताती है॥
गिरधर……
श्री राधे के संग में, झूलोजी मोहन,
छेड़ रसीली बांसुरी, शीतल हो तनमन,
बजी जब बांसुरी, खिली मन की कली,
मगन ‘ नन्दू’ सारी सखियाँ, तुम्हे झूला झुलाती है॥
गिरधर……