घनश्याम बुलावे झूला झूलन ने चालो बाग में ॥टेर॥
झूलन चालो बाग में, सज सोलह सिंणगार।
बत्तीसों आभूषण पहिरों, गल मोतियन को हार॥१॥
छटां छबीली बाग की, खिल रही केशर क््यार।
चम्पा चमेली खिली केतकी, भंवर करत गुन्जार॥२॥
दादुर मोर पपीहा बोले, पिवं-पिवं करत पुकार।
घन गरजे बिजली सी चमके, शीतल पड़त पुंहार॥३॥
मलियागिरी को बण्यों हिण्डोलों खिच रही रेशम डोर।
झूलो आप झुलावे मोहन, गावैं राग मल्हार॥४॥
शिव सनकादिक और ब्रह्मादिक, कोई न पायों पार।
“दास नारायण ‘ शरण आपकी, करियो बेड़ा पार॥५॥