दोहा -सुनलो हमारी, शरण हैं तुम्हारी, तेरे हो लाल कहते हैं ।
हम बार-२ गाकर के तुझे खादू वाले बुलाते हैं ॥
दानी हो तुम श्यामा मेरी झोली को भर दो ।
हम और कहाँ जायें, मेरो वितता को सुनलो ॥ टेर॥
( तर्ज : होठों से छू लो तुम… )
अन्तरा
तेरी महिमा का श्यामा , कोई पार नहीं पाया,
तेरे जैसा दानी प्रभु,कलियुग में ना आया.
तू शीश का दान दिए , अपने भग्तों को सुनलो
हम और कहाँ…
_____________________
तेरे दर पे पड़ा हूँ मैं खली ना जाऊ गा,
सुनता है नो सुनले,नहीं मैं मर जाऊंगा
कितने बेदर्दी हो , थोड़ों सा दया करे
हम और कहाँ…
_____________________
दिल मैं तुम समाए हो,मेरे रोम रोम में तुम,
तुझे माँ की कसम देता अब जल्दी आओ तुम
जिस बालक ओम तेरा गाता है भजन सुनलो
हम और कहाँ…
BhajanVarsha.IN