दोहा – गुरु मुरत सुख चन्द्रमा सेवक नैन चकोर ।
अष्ट प्रहर निरखत रहूँगुरु मूरति की ओर ।।
श्री गुरु वन्दना
छोटी-सी अरदास गुरुजी
चरणां मैं पड़ी।
लगा के श्याम से अरदास
मीटाद्यो संकट की घड़ी ||टेर।।
अंतरा
सारै जग में भटक्या पर
सुणी ना कोई बात ||
थारै आगै अर्ज करां म्हे
जोड़ा दोनूँ हाथ ।
म्हारी अभिलाषा न पूरी करयो
अब की घड़ी ।।१।।
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गिरतो पड़तो ठोकर खातो
थारै द्वारै आयो ।
काम मेरो छोटो सो गुरूजी
करद्यो मन को चायो ।।
म्हार रखद्यो सिर पर हाथ लेकर
मोर की छड़ी ||२||
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ऐसो द्यो वरदान गुरुजी
नित उठ मौज उड़ावाँ ।
फागण क मेल पर बाबा श्याम
का दर्शन पावाँ ।।
म्हार घर में लगाद्यो अब तो
प्रेम की झड़ी ।।३।।
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सेवक पालीराम थार
चरणां शीश नवाव ।
ऐसी छाप लगाद्यो गुरुजी
किस्मत पलटी जाव |
म्हारी पार लगा द्यो नैया
थारे भरोस पड़ी ।।४।।
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