बाबा ये नैया कैसे डगमग डोली जाये,
बिन मांझी पतवार के इसको,
तूं ही पार लगाये ।।
तर्ज – गंगा तेरा पानी अमृत
दूर-दूर नहीं दिखे किनारा लहरें भी बिसराये,
बादल भी हैं गरज रहे और मुझको रहे डराये,
जब कि मैं ये सोच रहा, तूं अब आये तब आये ।।
बाबा ये नैया कैसे …..
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दुनिया है एक रंगमंच और तूं इसका निर्देशक,
तूं ही बनाये तूं ही मिटाये तूं ही इसका विशेषज्ञ,
फिर क्यूँ ये तेरे हाथ के पुल, मुझको आँख दिखाए।।
बाबा ये नेया कैसे …..
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तुझको ही मैं समझूँ अपना बाकी सब हैं पराये,
तेरे हाथों सब कुछ संभव तूं ही लाज बचाये,
करदे एक इशारा नैया, पार मेरी हो जाए ।।
बाबा ये नैया कैसे ….
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तीन बाण तरकश में तेरे चलें तो ना रुक पायें,
भेदे तूं पत्तो की तरह फिर कोई भी ना बच पाये,
भेदो तुम ‘निर्मल’ की विपदा, पास मेरे जो आये ।।
बाबा ये नैया कैसे …..