आंख्या को काजल थारो, होठां री लाली जी,
तो अइयाँ की लटक ना, पेल्ह्या देखी भाली जी॥
॥होठां की ॥
(तर्ज: पीलो…. )
मोर मुकुट की थारै, शोभा घणेरी जी,
तो केशर को टीको, नख बेशर मतवाली जी॥
॥ होठां की॥
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कानां में कुण्डल थारै, गल में गलपटियों जी,
तो कुण्डल के नीचे झूमै , चम-चम करती बाली जी ॥
॥ होठां की॥
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हीरा और पन्ना जड़िया, हार जड़ाऊ जी,
तो कटि पर लटके लट, नागण जैसी काली जी॥
॥ होठां की॥
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दुलरी तिलरी भी झूले, बाजू बन्द पूँची जी
तो फैटो गुलनारी जाँपै झीणी झीणी जाली जी॥
॥ होठां की॥
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पीले पीताम्बर मांही, लहर अनूठी जी,
तो रूणक झूणक बाजै, नूपुर नखराली जी॥
॥होठां की॥
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“’श्याम बहादुर!” थारा ‘शिव’ यश गावै जी
तो उजड़े दिलों का दाता, थे ही बनमाली जी॥
॥होठां की ॥