होंगे ठाट निराले,
तेरे होंगे ठाट निराले
इक बर तु भी दादी का
घर में मंगल पाठ करा ले’
जिसने जिसने किया है मंगल
उन के घर में देखा,
दादी ने अपने हाथों से
बदली किस्मत रेखा
करिश्मा होता दादी का,
ईक बर तु भी आजमाले ॥ होंगे….
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जो करता है मंगल उनके
घर में दादी आती
सातो सुख दुनिया का अपने
हाथों से बरसाती,
ईक बर अपनी दादी से तु भी
झोली को भरवाले ॥ होंगे….
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रमाकांत जी के हाथों से
ऐसा पाठ लिखाया
वालमिक, तुलसी के जैसे
घर घर में पुजवाया
सेवा करके दादी की तु भी
किस्मत को चमकाले ॥ होंगे…
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जैसे गीता और रामायण
वैसा ये मंगल है
हाथो हाथो ही परचा देता,
देखा ये हर पल है
कहता श्याम यही सब से
ईक बर तु विश्वास जगा ले ॥ होंगे…