श्री श्याम धणी की जिस घर में,
ये ज्योत जगाई जाती है,
उस घर का भक्तों का क्या कहना,
वहाँ खुशीयाँ पाई जाती है,
श्री श्याम जय श्याम – ३,
जय श्री श्याम ।। टेर ।।
(तर्ज : है प्रीत जहाँ की रीत सदा)
जो रोज सवेरे उठकर के
श्री श्याम को शीश नवाते हैं,
जो नाम श्याम का लेकर ही
घर से बाहर जाते हैं,
ज्योति की भभूति श्रद्धा से-2,
माथे पे लगाई जाती है ||1||
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जहाँ श्याम को भोग लगा करके
भोजन को परोसा जाता है,
उस भोजन को कम मत समझो
वो तो अमृत बन जाता है,
भोजन के एक-एक दाने में-2,
श्री श्याम कृपा मिल जाती है || 2 ||
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जो मन के सच्चे भावों से
श्री श्याम को भजन सुनाते हैं,
कैसा उनका दीवानापन
तन-मन की सुध बिसराते है,
जहाँ माता अपने बच्चों से-2,
“श्री श्याम श्याम’ बुलवाती है || 3 ||
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ऐसे प्रेमी के घर में तो
मेरा साँवरिया बस जाता है,
उस घर की चिंता श्याम करें,
घर का मालिक बन जाता है,
‘ “बिन्नू उस घर के कण-कण से-2,
मंदिर की खुशबू आती है ||4 ||