उलझन में भी ओ बाबा
संतोष कर रहे हैं
तेरा हाथ पीठ पर हम
महसूस कर रहे हैं
उलझन में भी ओ बाबा …
तर्ज – किरपा को क्या मैं गाउ, कृपा से गा रहा हूं
corus
जो भी जहाँ में पाया
है श्याम तेरी माया
तू ज़िन्दगी है
तू ही बंदगी है
मेरी तू बंदगी है
मेरे श्याम ……..
मेरे श्याम
सुनसान ये डगर है
फिर भी हमें ना डर है
हमें ये खबर है गिरधर
तू भी ना बेखबर है
जिस और भी बढे हम
बेख़ौफ़ बढ़ रहे हैं
उलझन में भी ओ बाबा …
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हमें रोकने को आई
यूँ तो हज़ार आंधी
आई चली गई वो
छू ना सकी ज़रा भी
विपदाएं पीछे खींचे
हम रोज़ बढ़ रहे हैं
उलझन में भी ओ बाबा …
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ये ना कहेंगे मुश्किल
राहों में ना मिली है
पर श्याम की कृपा ये
मुश्किल से भी बड़ी है
गोलू को ख़ुशी को पाने
ग़म ये गुज़र रहे हैं
उलझन में भी ओ बाबा ..
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