टेर मेरी, सुणल्यो श्याम धणी,
पीर घणेरी, रैन अंधेरी, मत कर देरी,
म्हारा मुकुटमणि ।।
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चाकरियो हूँ थारै दर को,
रिणिया हूँ मैं तो गिरधर को,
कितना की ही, बिगड़ी बणी ।।
टेर मेरी, सुणल्यो …….
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कृष्ण मुरारी लीलाधारी,
प्रीत पुराणी थारी म्हारी,
लट बबर् खाये, ज्यूँ नागफणी ।।
टेर मेरी, सुणल्यो ……
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मानै नांही डारै पाणी,
ये अँखियां तो श्याम दीवानी,
हिवड़ै मं मेरि, आस घणी ।।
टेर मेरी, सुणल्यो …….
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साँचो है दरबार तिहारो,
तो मन्नै भी पार उतारो,
भटक रही, मन की हिरणी ।।
टेर मेरी, सुणल्यो …….
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न ‘शिव’ दर्दी नै.
आँख्यां आय, या के ॥
टेर मेरी, सुणल्यो …….