घनश्याम बुलावे झुला झूलन नै चालो राधे बाग में ।। टेर ।।
(तर्ज : झूला….)
झूलन चालो बाग में सज सोलह सिणगार,
आभूषण पहिरो, गल मतियन को हार ।।१।।
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छटा छबीली बाग की, खिल रही केशर क्यार,
चम्पा चमेली खिली केतकी, भौरां करत गुजार ।।२।।
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दादुर मोर परपीहा बोलत, पिव पिव करत पुकार,
घन गरजे बिजली चिमके, शीतल परत फुहार ।।३।।
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मलियागिरी को बन्यो हिंडोलो, खीच रह्यो रेशम तार,
झूलो आप झुलारे मोहन, गावो राग मल्हार ।।४।।
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शिव संकादित आदि ब्रह्मादिक कोई न पावे पार,
दास नारायण शरण आपकी करियो बड़ा पार ।। ५ ।।