अमृत बरसे रे, सोणा सा श्याम तेरा श्रृंगार
बाबा बैकुण्ठ सा लागे, तेरा दरबार
( तर्ज: किस्मत वालों को…. )
स्वर्ग सरीखा एयाम नजारा है
धरती पे चन्दा को उतारा है
बजने लगी है लाखों शहनाई
दूल्हे सा तुझे आज संवारा है
‘पलभर ना हटती मुख से, पलके सरकार,
कलियों को गुच्छो में समेटा है
गजरों से तुझे आज लपेटा है
स्वर्ग लोक का एक फरिश्ता ज्युं
‘सजधज कर आसन पे बैठा है
मनभावन झांकी तेरी, निरखे संसार।
हर्ष कहे तूने दिल लूटा है
सच तो ये है बाकी झूठा है
चातक जैसे स्वाति पा जाये
सूखे में युं झरना झूटा है
प्यासी आँखों ने पाई, मानो जलधार