आओ बसाएँ मन-मन्दिर में झाँकी सीताराम की
जिसके मन में राम नहीं वो काया है किस काम की |
(तर्ज: क्या मिलिए ऐसे लोगों से…)
गौतम नारी अहिल्या तारी श्राप मिला अति भारी था
शिला रुप से मुक्ति पाई चरण राम ने डाला था
मुक्ति मिली तब वो बोली जय-जय सीताराम की ।
जिसके….
जात-पांत का तोड़ के बन्धन शबरी मान बढ़ाया था
हँस-हँस खाते बेर प्रेम से राम ने ये फरमाया था
प्रेम भाव का भूखा हूँ मैं चाह नहीं किसी चाम की ।
जिसके……
सागर में लिख राम-नाम नल-नील ने पत्थर तैराये
इसी नाम से हन्नुमान जी सीता मैया की सरुध लाये
भक्त विभीषण के मन में तब ज्योति जागी श्री राम की ।
जिसके…..