अभी भी समय है, गुरु को मनाले ।
गुरु को मनाले अपने प्रभु को रिझाले |
चरण थाम इनके अपने भाग्य जगाले | |टेर।।
तर्ज :कुण सुणलो कीणे सुनावां
इनकी दया की सीमा नहीं है ।
रस्ता उजागर भी धीमा नहीं है ।
तू आँखों से अपनी परदा हटाले ।।१।।
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गुरुदेव से मुंहमांगा है मिलता।
मन मूढ़ फिर क्यूं सस्ता तू लेता |
दुर्लभ की खातिर अर्जी लगादे ||२||
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चला आ शरण में, मिटाने हो गर दुःख |
इन चरणों में तो बस सुख ही है सुख ।
अगर चल न पाये तो मन से ही ध्याले ||३||
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सब तीर्थ प्रभूजी के, चरण में बसे हैं ।
चरण वो गुरुजी के मन में बसे हैं ।
इन्हें छू के तू सभी तीर्थ नहाले ||४||
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अगर तुझमें कुछ भी शिकायत नहीं है ।
निश्चय भी करने की, ताकत नहीं है ।
बचालो गुरुजी मुझको, इतना तो कह दे ||५||
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