खाली झोली लेकर आयो भरदे रे सांवरिया
तेर होता खाली जाऊं, क्यूं रुस्या मनगरिया।।
तर्ज – नगरी नगरी द्वारे द्वारे
टाबरियो शरणा म आयो, पलका न उघाड़ो जी
थे क्यूं म्हासूं रूस क बैठ्या, म्हानै आय बतावो जी
दीन दुखी टाबरिया स क्यूं, फेरी रे नजरिया।।
म्हारी लाज है थारै हाथां, थानै ही निपटाणो है
क्यूं मुण्डो थे फेर के बैठा,म्हानै आय बताणो है
डीकत डीकत कद थे आवो, बीती रे उमरिया
मेर मन की पीड़ा बाबा थांसू कांई छानी है
थे ही म्हारा मायत बाबा, निठुराई क्यूं ठानी है
आख्ंया सूं बहती धारा न, रोको थे सांवरिया।।